
आज वी-डे है, प्यार का अनमोल दिन, मेरे लिए आवश्यक है की इस विषय में भी कुछ लिखूं, चलिए एक महँ प्रेमगाथा के कुछ अंश में आपको बताता हूँ-
मेरे परदेश यानी उत्तराखंड में भी एक महान प्रेमगाथा प्रसिद्ध है, यह कहानी कोई हज़ार साल पुरानी है, कहानी तब की है जब कत्युरी राज का अन्तिम दौर चल रहा था। राजधानी कार्तिकेय पुर यानी बागेश्वर(कुमाऊ) से द्वारहाट यानि बैराठ आ चुकी थी। कत्युरी वंश का राजा मालूशाही के स्वप्न में जोहार के सुनपति शौका कन्या राजुला आती है, सुन्दरता से परिपूरण राजुला को देखते ही मालूशाही को उस कन्या से प्रेम हो जाता है। शौका लोगों का रहन सहन हिमालय के निचले हिस्सों की तुलना में भिन्न है। तो आपस में शादी ब्याह भी कम ही होते हैं,
मालूशाही की सात रानियाँ पहले से ही हैं, पर राजुला का अप्रतिम सौन्दर्य को स्वप्न में देखकर वह राजुला पर मोहित हो जाता है। वह राजुला को प्राप्त करने के लिए मल्ला जोहार के दुर्गम रस्ते पर दल बल के साथ जाता है। और कहते हैं जोडियाँ स्वर्ग से ही बनकर आती हैं, तो वह सही भी हो सकता है, क्योँ की कहते हैं की राजुला को भी मालूशाही स्वप्न में आता है, और वह भी उस से प्रेम करने लगती है, मन ही मन उसे अपना मान लेती है। भारत की हर प्रेम कहानी की तरह यहाँ पर भी राजुला के पिता उसका दीवानापन देखकर उसकी शादी हुन्देश यानी तिब्बत में एक व्यापारी से कर देते हैं। मालूशाही अपने लव-लश्कर के साथ जोगी के वेश में शौक्आन पहुँचता है,
मालू की यह यात्रा बहुत ही ज्यादा रोमांचकारी है क्यूंकि वह हिमाच्छादित रस्ते से जो की बहुत ही ज्यादा दुर्गम है, से यात्रा करता है।
मालू किसी तरह राजुला से मिलता है, उसे उसकी मन की बात पूछता है, तो वह भी अपने मन की बात बता देती है, तब वह राजुला के पिता से उसका हाथ मांगता है पर वह किसी भी कीमत पर मन कर देता है। अंत में मालूशाही को ज़हर खिला दिया जाता है................
सिदुवा और विदुवा नाम के दो योगी मृतपराय मालूशाही को बचा देते हैं, फ़िर वह राजुला के लिए युद्ध करता है, और जीतकर राजुला को अपनी पत्नी बनाकर बैराठ लाने में कामयाब हो जाता है।
यह कहानी शताब्दियों पुरानी है, पर पीड़ी दर पीड़ी यह कहानी आगे बड़ रही है, और सच ही कहा सच्चा प्यार कभी मरता नही है, हमेशा के लिए अमर हो जाता है।