Tuesday, January 13, 2009

पहाड़ की दहाड़...

सुनसान रात आज कुछ ज्यादा ही खामोश थी, हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड राज्य जो तब उत्तर परदेश में था, नीद की सुनहरी गोद में पसरा हुआ था, वह अक्टूबर के महीने की बात है, ठण्ड का प्रकोप कुछ ज्यादा ही था। उत्तरकाशी जिल्ले के एक गाँव में लोग किसी भी समय आने वाली प्रलय से बेखबर सुनहरे सपनों के साथ सो रहे थे, रात आधी से भी ज्यादा समाप्त हो गई थी और सबको आने वाली नयी भोर का इंतज़ार था, लोगों के पालतू जानवर, जंगली पशु पक्षी सब बेखौफ सो कर भोर का इंतज़ार कर रहे थे, एकाएक खूंटे पर बंधे हुए जानवरों के गले की घंटियाँ बजने लगी जिसका मतलब था की जानवर खौफजदा हो गए थे, कुत्ते भोंकने लगे, और पक्षी चहचहाने लगे, जब तक कोई कुछ समझ पता, धरती के अन्दर हो रही उथल पुथल साफ़ कानो में आने लगी, स्वप्नों में खोये लोग उस उथल पुथल को सुनकर जाग गए और बहार आकर देखने को तत्पर हुए ही थे की………।धरती हिलने लगी!

छार दीवारों के अन्दर पसरे लोग कुछ समझ पाते की मकान भरभरा कर गिरने लगे, और लोग अन्दर ही कैद होने शुरू हो गए थे, केवल कुछ ही पलों में सब कुछ बदल रहा था, जानवर खूंटे पर रम्भा रहे थे, जानवरों की गौशाला, चिडियों के घोंसले, हर प्राणी का अस्तित्वा मिटने को तत्पर थी धरती, वही धरती जिसने अतुल्य, अनमोल प्यार दिया था इन धरतीवासियों को, वही धरती जिसकी गोद में ये लोग इस सृष्टि में आए थे, वही धरती जो इन लोगों की सभी इच्छाएं, आकंक्षाये पूर्ण कर रही थी, और करने का संकल्प लिया है इस धरा ने, जाने आज क्योँ क्रोधित हो गई थी, साक्षात् रणचंडी बन गई थी, मनो सारी सृष्टि का संहार करने को तत्पर हो। धरती हिलती गई ………कुछ देर बाद सारा वातावरण शांत हो गया, पूरी तरह से शांत शायद धारा मा कुछ नरम हो रही थी, सुबह होने में कुछ ही वक्त बाकी रहा था। चारों ओर का माहौल बदल गया था, जहाँ खुशियों के साथ दिन की शुरुआत सूर्य निकलने के बाद होती वहां बिलाप कर के सूर्य के निकलने का इंतज़ार हो रहा था। कई लोग खँडहर हुए घरों में दम तोड़ रहे थे कई लोगों का साथ उनकी साँसे छोड़ चुकी थीं, परदम तोड़ रहे लोगों की मदद करना भी मुश्किल था क्योँ की न कोई उजाला था, न कोई इस हिम्मत में था की किसी की मदद कर सके, हर घर में लाश दबी थी, हर घर में यदि
कोई रोने वाला बचा था तो रो रहा था वरना मदद मांगने के लिए कोई भी नही दिख रहा था।
आख़िर उस भयानक रात के बाद एक नई सुबह, जो दुखों का कहर भी साथ लेकर आई , उस गाँव का मंजर यह था की चरों तरफ़ करुणा, बिलाप, क्रंदन हो रहा था, मकान ध्वस्त हो गए थे, जानवरों ने खूंटे पर ही दबकर दम तोड़ दिया था, ओ मदद के लिए रम्भा भी न सके, इंसानों की लाशे जो दबी हुई थी निकली जाने लगी, किसी का बेटा, किसी का भाई, किसी की बहन तो किसी की मा की कब्र उनके मन्दिर स्वरूप घर में बन गई थी, तो किसी का पूरा का पूरा परिवार ही उस कब्र में दफ़न हो गया था। जंगलों में पेड़ टूट कर बिखर गए थे, पक्षियों के घोंसले टूटकर नीचे बिखर चुके थे, कुछ पक्षी क्रंदन करते हुए चहचहा रहे थे, कौआ अपने घोसलों के बच्चों की मौत के कारण चिल्ला रहे थे। इंसान ही नही मनो पूरी प्रकृति विलाप कर रही थे, दहाड़े मार मार कर रो रही थी, ईश्वर को कोष रही थी।
और लोगों की मदद करने लगे, सूने पड़े शमशान घाटों में जन सेलाब दिख रहा था, पूरे इलाके में शमशान की घाटी में धुवें का गुबार दिख रहा था, कई कई लाशे एक साथ जल रही थी, पिचकी हुई लाशे, दबी हुई लाशे, कतरा-कतरा हुई लाशे। खुदाई का काम शुरू हुआ, लाशे निकाली जाने लगी
जो पहले दिन नही निकाली जा सकी, जानवरों की लाशें घसीट कर फेंकी जाने लगी और फ़िर अगली रात सबके लिए क़यामत की रात, कल तक जो साथ खा पीकर सोये थे आज उनके साथ नही थे, काल तक जिन्होंने बैठकर हुक्का पिया था आज साथ नही थे, कल तक जो साथ में रहकर घूमकर आए थे ओ आज जा चुके थे कभी न मिलने के लिए, जो फौजी साल में दो महीने की छूती लिए घर आया था वह फ़िर वापस न जा सका, जो लाडली अपने पीहर आई थी वह वापस न जा सकी।


ख़बर मिलते ही बचाव दल आए, एन जी ओ आए, सरकार ने मदद के लिए स्पेशल पैकेज की घोषणा की, ख़बर मिली की १००० के करीब लोग मरे गए, और कई घायल हो गए, कई हमेशा के लिए जीते जी मर गए कई अपंग हो कर रह गए। लोगों ने कहा ६.६ रेक्टर का भूकंप था।
यह एक रात का कहर था जो पहाड़ वासियों के दिलों पर कई जख्म लगा गया, कुछ ही वक्त के लिए आया और फ़िर चला गया। सबसे ज्यादा नुक्सान उत्तरकाशी जिल्ले में ही हुआ, सबसे ज्यादा मौतें वहीँ हुयी थी। लोगों को तम्बू मुहेया कराये गए क्योंकि घर बार टूट चुके थे, खाने को राशन दी गई, ओड़ने को कम्बल दिए गए, काफी जन मन और धन तीनो की हानि हुयी, साल बीतते रहे और दुनिया बदलती रही पर नासूर बन गए वे जखम जो उस रात ने दिल को दिए थे, कभी भी एक कसक एक टीस दिल में जगा देते हैं।


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